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सत्य ज्ञान और पाखंड ज्ञान इन दोनों में क्या भेद है हम आपको आज 10 से 15 ऐसे विभिन्न पॉइंट्स बताएंगे जिससे कि आप पता कर सको कि सत्य ज्ञान और पाखंड ज्ञान में क्या अंतर है I जब तक आप लोगों को यह पता नहीं चलेगा कि सत्य ज्ञान और पाखंड ज्ञान में क्या भेद है ,..तब तक आप को बहुत सारे ज्ञान ऐसे प्रतीत होंगे जैसे वह सत्य ही है I सारे पाखंड ज्ञान में यह बताया जाता है कि परमात्मा अविनाशी है, सारे पाखंड ज्ञान में परमात्मा के गुण तो लगभग सब में बराबर बताए जाते हैं लेकिन उसकी जो प्राप्ति की विधि है वह अपने मनमुखी विधि की होती है क्योंकि गुरुमुखी भी मनमुखी ही होता है क्योंकि जो गुरु होता है वह आपको ज्ञान अज्ञान से परिपूर्ण नहीं करता I

सच्चा गुरु हमारा स्वयं अविनाशी परमात्मा ही सच्चा गुरु होता है वह सीधा आपके ज्ञान और अज्ञान को ही खत्म कर देता है I जब ज्ञान और अज्ञान खत्म हो जाता है आपका, तब जाकर आप उस परम परम सत्ता में पहुंच पाते हो , तब जाकर आप मन से समस्त मनों से परे हो पाते हो I उस सत्ता को जान पाते हो I उस सत्ता को जानना,. मन से परे होना होता है I क्योंकि मन कभी भी उस सत्ता को नहीं जान सकता I

तो सबसे पहले आइए हम कुछ पॉइंट्स के बारे में बात करते हैं कि वह पॉइंट्स क्या हैं I जो पाखंड ज्ञान है, वह यह कहता है, वह दो तरीके की बात करता है पाखंड ज्ञान I पहली बात यह करेगा कि कोई किसी भी तरह का लोक नहीं होता , स्वर्ग, नरक सब यही है, सतलोक यहीं है I सब कुछ ऐसा ही कहेंगे कि यह सब भ्रम है ,माया है ऐसा कह कर आप को भ्रमित कर देंगे , आपको सही सत्ता से विमुख कर देंगे, सही ज्ञान से विमुख कर देंगे I सही मायने में अनंतो लोक हैं I जो संतों ने अपनी वाणी में सतलोक, अगम लोक अनामी लोक, अलख लोक कहा है, ये चार सेट तो हर लोक में होते हैं I नाम रखने मात्र से कोई सतलोक या अनामी लोक नहीं हो जाता I सभी जितने भी पैगंबर आते हैं अपने लोकों की व्याख्या सत्य आत्मा की और परमात्मा के गुणों के अनुरूप ही करते हैं लेकिन जहां लोक होते हैं वहां मुक्ति बिल्कुल नहीं होती I वह ऐसे ही होते हैं I

तो जो सच्चा ज्ञान है, जो सत्य ज्ञान है , वह कहेगा कि लोक तो अनंत हैं ऐसे ऐसे लोक हैं जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते I और जो पाखंड ज्ञान है वह दो बात बताएगा, या तो वह कहेगा कि लोक होते ही नहीं ,सब भ्रम है मिथ्या है या वह यह कहेगा कि लोक होते हैं, इस लोक के बाद सीधा सतलोक होता है या अमरलोक होता है या कहेगा कि अगम, अनामी लोक होता है …..इस तरह से लिमिटेड लोक बताएगा I तो यह दोनों ही पाखंड हैं ,.. क्योंकि लोक लिमिटेड नहीं है, लोक अनंत हैं I वहां पर शरीरों की गुणवत्ता में भी विभिन्न तरह की अनंत विभिन्नताए हैं शरीर की गुणवत्ता में भी,... यहां की गुणवत्ता से भी बेकार गुणवत्ता वाले शरीर है और यहां की गुणवत्ता से भी अनंत गुना श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम शरीर भी हैं और मध्यम शरीर भी हैं I

इस तरह से अनंतों लोक बनते हैं,.. अनंतों व्यवस्थाऐँ बनती है I तो पहला तो सत्य ज्ञान आप को यह बताएगा कि अनंतों लोक होते हैं , वह आपको मिथ्या जाल में नहीं डालेगा कि सीमित लोक होते हैं या लोक होते ही नहीं I इतना विराट संसार है इतने अनंत लोक हैं,..... इतनी अनंत गैलेक्सी हैं.. और आप कहते हो लोक नहीं है I आप यहां पर इंसान को देख रहे हो,.. जानवरों को देख रहे हो अपनी आंखों के सामने,... तारों को देख रहे हो,... विभिन्न ग्रहों को देख रहे हो और आप कह रहे हो कि स्वर्ग नर्क भी यही हैं सारे लोक यहीं हैं या लोक है ही नहीं I जो है वो यही धरती है I इस तरह से आपको मिथ्या जाल में डाला जाएगा I वह सूक्ष्म लोक और स्थूल लोकों के बारे में बिल्कुल नहीं जानता I जो भी अगर ऐसी बात करता है तो I

पाखंड ज्ञान में आपको ब्रह्म को सर्वव्यापी बताया जाएगा, ...कहेंगे कि ब्रह्म सर्वव्यापी होता है ,...वह कहेंगे कि ओम ,सोहम यह सब सर्वव्यापी बताते हैं क्योंकि शब्द ही ब्रह्म होता है और जिस शब्द से जो जो रचनाएं होती है उन शब्द का अनहद या उन शब्द की मौजूदगी, उसी रचना के अंतर्गत होती है I जो उस रचना से परे होता है वहां उसकी व्यापतता नहीं होती इसलिए ब्रह्म सर्वव्यापी नहीं होते I ब्रह्म केवल व्यापी होते हैं I सर्वव्यापी केवल और केवल आत्मा है या परमात्मा है, दोनों एक ही है ,आगे आपको और क्लीयर होगा कि आत्मा / परमात्मा एक ही है I तो ब्रह्म सर्वव्यापी नहीं होता, ब्रह्म तो व्यापी होता है , सर्वव्यापी केवल और केवल वह परमसत्ता , परम परमेश्वर, परमात्मा ही होता है , वही अजन्मा है I लोगों को केवल यह गुरुवाद का और पाखंड करना जानते हैं , जो गुरु ने बताया उसी के अनुरूप चलना जानते हैं और थोड़ा सा इनकी ज्ञान की कोई काट करे तो यह या तो उनको पाखंडी कहेंगे या चोर कहेंगे I इनको गाली गलौज के सिवाय किसी को कुछ नहीं आता I

अगर आपको सत्य ज्ञान चाहिए तो स्वयं परमात्मा से जुड़ना होगा क्योंकि गुरु के पास कोई ज्ञान नहीं होता I गुरु आप में वह क्षमता प्रकट नहीं कर सकता ,..जो आप में परमात्मा प्रकट कर सकता है I सही मायने में आज के संसार में केवल इतने से मार्गदर्शन की जरूरत है, जिस मार्गदर्शन से आप यह पाखंड उतार सको I बाकी तो फिर परमात्मा ही बचता है , सत्य ही बचता है, बस ये पाखंड ही उतारना होता है और जो इस पाखंड को उतारने की कोशिश करता है , संसार में उसी को पाखंडी कहा जाता है, यह संसार का नियम है I सत्य के समक्ष इतने सारे आवरण खड़े कर दिए जाते हैं, कि व्यक्ति बेबुद्ध हो जाता है I बिना आत्म विवेक का हो जाता है I उसकी बुद्धि हिप्नोटाइज हो जाती है , सम्मोहित हो जाती है विभिन्न ज्ञानों से, उस ज्ञान के सम्मोहन की वजह से I वह इन मूर्खतापूर्ण बातों से बाहर नहीं आ पाता,.. इसीलिए मित्रों यह बातें आपको जानना अति आवश्यक है I

लोग यह बताते हैं की आत्मा और परमात्मा अलग अलग है और आत्मा को भी अजन्मा बताते हैं और परमात्मा को भी अजन्मा बताते हैं I कभी तो कहेंगे आत्मा अजन्मी है और कभी कहेंगे कि परमात्मा ने आत्मा को जन्म दिया I परमात्मा से आत्मा निकली,... या कुछ लोग ऐसे कहेंगे कि सत्य से संस्कारित जो भी बनता है वह सत्य ही होता है अविनाशी ही होता है , फिर अगर इनकी कोई काट करता है कि अगर सत्य से संस्कारित कुछ भी होता है तो सर्वप्रथम आपके अनुसार आपके ज्ञान के अनुसार सत्य ही होगा , तो कहते हैं हां जी, तो सारी सृष्टि सत्य से ही बनी होगी, तो वह कहते हैं जी बिल्कुल , जब सारी सृष्टि सत्य से बनी है, तो सारी सृष्टि सत्य होनी चाहिए, सारी सृष्टि अविनाशी होनी चाहिए और सारी सृष्टि दुखों से दूर होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि सत्य से कुछ भी नहीं बनता I सत्य सारी क्रिएशन(CREATION) से दूर है I सत्य से कुछ नहीं बनता I

तो इस तरह के नंबरों से आपको दूर रहना होगा I पाखंड मत में आपको ध्यान मार्ग बताया जाएगा, आप को कहा जाएगा, ध्यान से परमात्मा की प्राप्ति होती है या आपको कहा जाएगा कि सुरति शब्द योग से परमात्मा की प्राप्ति होती है या आपको कहा जाएगा सुरति निरति से परमात्मा की प्राप्ति होती है I इस तरह से आपको प्रयासों में उलझाया जाएगा I आपको ध्यान दे दिया जाएगा और ध्यान मन का ही गुण है मन का ही कार्य है और ध्यान से मन मजबूत होता है I मन स्थूल शरीरों को छोड़कर सूक्ष्म शरीरों में जाने लगता है, अपनी सुरति को वहां पहुंचाने लगता है I वह मुक्ति का द्वार नहीं है I परमात्मा प्राप्ति ध्यानातीत अवस्था से होती है I तो सत्य ज्ञान यह है कि मन से पार जाना है,... तो ध्यान से भी पार जाना होगा,..क्योंकि ध्यान , मन का ही गुण है, मन ही ध्यान में रमता है I

मन ही ध्यान और अध्यान में है I ध्यान, अध्यान से जो परे है, वह ध्यानातीत अवस्था है I वह निरंतर से अति निरंतर है, वह एक पल के खरब वे हिस्से में भी निरंतर है,, वह कभी टूटता नहीं है I ऐसा जो ध्यानातीत अवस्था है वही आत्मिक अवस्था है I वह मन की अवस्था नहीं है, वह मन से पार की अवस्था है , समस्त रोम-रोम कण-कण में और जहां कण नहीं अकण में भी वही निरंतर बस रहा है, बस रहा था ,..है ,..और रहेगा I तो इस बात को भी जानना अति अनिवार्य है, कि परमात्मा ध्यानातीत अवस्था से ही मिलता है, ना ध्यान से मिलेगा न सुरत से मिलेगा I केवल और केवल ध्यानातीत अवस्था से मिलेगा, सुरत अतीत अवस्था से मिलेगा I जहाँ सुरति का कोई प्रयोग ही ना हो ऐसी अवस्था से वो मिलेगा, और पाखंड ज्ञान जो है सबसे पहले अपना लोभ जरूर देखता है I पाखंड निर्लोभी नहीं होता और पाखंड ज्ञान में जो ज्ञान ,..पाखंड ज्ञान को देने वाला होता है वह अपने आप को गुरु साबित करने की कोशिश करेगा I वह कहता है कि आप मेरे चरण धोकर पियो तो मेरे अंदर जो ज्ञान है वह आपके अंदर आएगा I तो उसमें भी पाखंड ज्ञान है और आप में भी पाखंड ज्ञान आ जाएगा, चाहे उसके चरण धोओ या मत धोओ I सत्य ज्ञान को इन्होंने इनकी बपौती बनाकर लोगों के सामने फैलाया हुआ है, कि सत्य ज्ञान इन्हीं पाखंडियों के पास मिलेगा I

सत्य ज्ञान किसी की बपौती नहीं है, किसी के पिताजी की, किसी के बाप की पैदाइश नहीं है सत्य ज्ञान I सत्य ज्ञान सबका है, सुलभ है, उसके लिए आपको किसी की कारगुजारी नहीं करनी होगी I किसी की खुशामदीद नहीं करनी होगी I जो बिना खुशामदीद मिले, जो आपको घर बैठे मिले, जो आपको पहले दिन से ही स्वतंत्रता देने लगे ,वही ज्ञान सत्य ज्ञान है I जो पहले दिन से ही आपको बंधन में डाल दे, कंठी तिलक के पाखंडों में बांध दे ,.. विभिन्न नियमों में बांध दे , विभिन्न, ऐसे लोगों की संगत में बांध दे, ज्ञानवश मजबूर कर दे आपको, कि आपको उनके साथ रहना है I विभिन्न नियमों को साधना है, कंठी माला धारण करनी है , तिलक लगाना है , दिया आरती करनी है, तो ये सारे पाखंड ज्ञान है, और ये पाखंड ज्ञान क्यों फ़ैलाया जाता है ? ताकि आप गुरु से जुड़े रहो I तो गुरु शिष्य का रिश्ता, यह पाखंड ज्ञान में होता ही है, लेकिन सत्य ज्ञान में किसी भी तरह के गुरु शिष्य की आवश्यकता नहीं है I किसी भी तरह के गुरु शिष्य संबंध बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है जो सत्य ज्ञान का थोड़ा सा भी भेद बताएगा, वह यही कहेगा कि उससे जुड़ जाइए, उससे जुड़ गए तो समझिए जो बताने वाला है उसको भी फायदा मिल जाएगा I आपका फायदा देने से उसको फायदा नहीं मिलेगा I सारे फल सांसारिक, आर्थिक, मानसिक, ये सारे फल उस परमात्मा से ही मिला करते हैं I सारी समृद्धि, सारी रिद्धि सिद्धि , उसके आधार से ही चल रही है I बिना उसके आधार के कोई संभव ही नहीं है, कुछ भी संभव नहीं है I अगर वह आधार हटा ले, तो सारा गिर के मृत् है, मृत ही हो जाएगा I उसके आधार से ही समस्त जीवंत नजर आ रहा है, चेतना को भी उसी ने आधार दिया हुआ है I

तो मित्रों,.. बहुत ही गहरा रहस्य है I संसार मतलब भटकाव I अगर संसार में किसी से भी कुछ भी ले रहे हो, तो भटकना ही मिलेगी ,, उसके सिवाय आपको कुछ भी नहीं मिलेगा I परमात्मा समस्त मटेरियल से परे है I इसीलिए अध्यात्म जगत को , ऐसा कहा जाता है कि यह समस्त तत्वों से परे है, समस्त मटीरीयल से परे है, लेकिन अगर पाखंडवाद की बात करेंगे तो एक शब्द है निःतत्व ,.. नि:तत्व मैं इसलिए कहता हूं, निःतत्व का मतलब होता है , तत्व और तत्वहीनता, दोनों से परे जो होता है वह निःतत्व होता है, लेकिन अगर पाखंड ज्ञान की बात करेंगे तो यह निःतत्व को भी एक तत्व बताएंगे और कहेंगे कि यह नि:तत्व, एक अमर तत्व है I इस तरह से आप को उलझाने की कोशिश करेंगे I मित्रों कोई भी तत्व हो, कैसा भी तत्व हो, निश्चित ही उसकी उम्र होगी, क्योंकि तत्व मतलब उसका जन्म हुआ है, वह बना है, और जो बना है वह अवश्य ही मिटेगा I

तो नि:तत्व कोई तत्व नहीं होता और न ही तत्वहीनता होती I शून्य भी एक तत्व है जिसको तत्वहीनता कह सकते हो आप I तो तत्वहीनता और तत्व , इन दोनों से परे निःतत्व होता है, वह परमात्मा तत्व होता है I इसलिए इन मूर्खों की बातों में ना आए I निःतत्व कोई तत्व नहीं होता है I और यह पंथ की बातें करेंगे I आप कहीं भी किसी भी पंथ में जा कर देखिए हर पंथियों ने कॉपीराइट करवा रखा है I अपने शिष्य को यह कहते हैं कि भैया सत्य हमारे पास ही मिलेगा और उन्होंने ऐसी भयानक आडंबर फैलाए हुए हैं , ऐसे भयानक आडंबर फैलाए हुए हैं, कि आप को मजबूर कर देंगे विभिन्न वाणियों से ,.. और आपको बता दिया जाएगा कि फलाने वर्ष में ये पंथ प्रकट हुआ है और इस पंथ के प्रवर्तक लगभग हम ही हैं और हम ही चला रहे हैं इस तरह से आपको पंथों का गमन करने के लिए प्रेरित करते हैं ,..और फिर जब इनकी भविष्यवाणियाँ झूठी साबित हो जाती हैं, इनके तथ्य और वार झूठे साबित हो जाते हैं जब इनके दिनांक, तारीख़, जो उन्होंने वाणियों के जरिए आप लोगों को जो बताई है, वह जब मिथ्या साबित होती है तो फिर एक नई नई तारीख दे देते हैं और मूर्ख जो पशुवत इन से जुड़े हुए हैं, जो पशुओं की भांति जुड़े हुए हैं, वो एक तारीख को छोड़कर दूसरी तारीख पर भरोसा कर लेते हैं I

पहले कहेंगे कि 2012 में ऐसा होगा फिर कहेंगे 2018 में होगा, जब 2018 निकल जाएगा और नहीं हुआ तो तो फिर नई तारीख़ दे दी जाएगी और कहेंगे, अब 2020 में होगा, 2020 भी निकल जाएगा, तो 2025 तारीख़ दे दी जाएगी, तब भी नहीं होगा तो आपको एक नयी तारीख़ 2030 दे दी जाएगी I अरे परमात्मा कोई पशु नहीं है , जिसको तुम किसी समय विशेष में बांध के रखोगे या पंथ विशेष में बांध के रखोगे I वह सत्य तुम्हारे बपौती नहीं है कि तुम तुम्हारे पंथ में बांध के रख लोगे, तुम्हारे झूठे ज्ञान में बांध के रख लोगे I झूठे ज्ञान से तो परमात्मा करोड़ों, खरबों मील दूर है,(मतलब अलख है वो) तुमको मिलना तो दूर की बात,.... तुम्हारे पाखंड का प्रक्रति के द्वारा सुनियोजित तरीके से दंड भी दिया जाएगा I

मित्रों समाज में जो पाखंड का निराकरण करे उसकी बलिहारी है, क्योंकि जैसे जैसे आपके एक एक तल हटते चले जाएंगे पाखंड ज्ञान के,.... तो सत्य अपने आप ही निखर आएगा I जो सत्य मौजूद है इन पाखंडों के बीच में, पाखंडों के हटने के बाद वो सत्य सामने निकल कर आएगा, इसीलिए पंथ विशेष में किसी भी प्रकार का कोई सत्य नहीं मिला करता है I जहां पंथ है, वो तो बेचारे अपने पंथ को जोड़ने में जोड़कर रखने में ही व्यस्त रहते हैं I सत्य कहां दे पाएंगे वो I अरे आज हमारे 1200 चेले हैं , 1500 करोड़ , दस हज़ार करोड़ I दस हज़ार से आठ हज़ार कैसे हो गए, बाक़ी के दो हज़ार कहां गए I विभिन्न तरीक़े के व्यवस्थाएं बिठाएँगे, और केवल इनकी व्यवस्था चेलों को जोड़ने की होती है I यह दूसरों की बुराइयां करेंगे, अपने ही पंथाधिकारियों की बुराइयां करेंगे, उनके खुद के ही पंथ से जुड़े लोगों की बुराइयां करेंगे I कइयों को गुरूविमुख कहेंगे तो किसी को गुरु द्रोही कहेंगे, कइयों को कहेंगे कि ये नर्क़ जाएगा, कइयों को कहेंगे कि इनका तो चेहरा ही देखना दुशवार है, इनका तो चेहरा ही नहीं देखना चाहिए I इस तरह की बातें कर करके आप लोगों को महा भयभीत कर देते हैं, डरा देते हैं आप लोगों को धमका देते हैं, और आप लोग बेचारे दुबक कर बैठ जाते हो, कहां सत्य मिलेगा आपको ?

डरपोक को कभी सत्य मिला है ? डरने वाले को कभी सत्य मिला है ? आप तो डर डर के शिकार होते जा रहे हो , स्वतंत्र होना पड़ेगा I सत्य अपने आप में पूर्ण स्वतंत्र है सारे डरों से, सारे भयों से मुक्त है वह सत्य ,... और उस सत्य को तुम डर में ढूंढ रहे हो ? पंथ में ढूंढ रहे हो ? कंठी माला में ढूंढ रहे हो ? और एक गुरु, जो स्वयं जीव है , जिसकी जिसकी देह में सत्रह सौ रोग हैं, ऐसे देह में आप परमात्मा को, सत्य को ढूंढ रहे हो ? ज्ञान जो मुंह से बोला जाता है उस ज्ञान में परमात्मा को ढूंढ रहे हो ? वाणी जो पुस्तकों में लिख दी गई उस वाणी में परमात्मा को ढूंढ रहे हो ?

मित्रों, सत्य प्राप्ति के लिए, आपको स्वतंत्र होना होगा, पूर्ण स्वतंत्र I इन आडम्बरों से पूर्णतया स्वतंत्रता लेनी होगी,... तब जाकर कहीं आप, उस सत्य की एक झलक प्राप्त कर पाओगे I ये लोग किसी पर्टिकुलर संत को लेकर चलते हैं जो पाखंड ज्ञान को मानते हैं, इनको तो इनका पाखंड सत्य ही नजर आता है,.... लेकिन मैं यहाँ जो असत्य ज्ञान है उसको पाखंड शब्द का प्रयोग कर रहा हूं यहां पर,...आप को समझाने के लिए, तो यह किसी पर्टिकुलर संत को लेकर चलते हैं और संत की ही वाणियाँ रटकर आपको ज्ञान बताने की कोशिश करते हैं और आपको कहेंगे, कि हम ही श्रेष्ठ हैं I यह जो पर्टिकुलर संत हैं , उनकी इन्होंने कभी पहले तो महिमा की नहीं , उनके जाने के बाद महिमा स्वार्थवश करते हैं, ताकि उनकी वाणी से यह कमा कर खा सकें और अपना सम्मान पा सकें I न तो इनके पास सत्य ज्ञान है, केवल और केवल उन संतों की जो वाणियाँ हैं, कमाई है जो उनकी, जो उनके अनुभव की कमाई है , उनके अनुभव की कमाई पर अपना सिक्का जमा कर बैठ गए I

ऐसे लोग प्रकृति के संविधान से नहीं बच सकेंगे, लेकिन आप लोगों को जरूर उस सत्य से विमुख कर देंगे उस परमात्मा से विमुख कर देंगे, उस अजन्मा से विमुख कर देंगे और उस अजन्मा को जानने की जिम्मेदारी आपके सिवाय किसी और की नहीं है I ये गुरु तो इनके पाप कर्म भोग लें , यही बहुत बड़ी बात है,... लेकिन आपको निश्चित ही फंसा कर चले जाएंगे I तो संतो ने अपनी कमाई , अपने अनुभव, वाणियों में लिखा , वो उनका अनुभव था I आपका अनुभव आप लिखो, कुछ प्राप्त करो, प्राप्त क्या करना होता है ? सारे जो भी तत्व है , जो भी मन है,.. सब छूट जाए, तो परमात्मा अपने आप प्रकट है, अपने आप सत्य मिला हुआ है, वो उजागर हो जाता है ,, तब जाकर आप स्वयं सारे ज्ञान अज्ञान से परे होकर उस परम ज्ञान को प्राप्त कर लोगे, जो न तो बोलने का ज्ञान है ,न सुनने का ज्ञान है I उस ज्ञान को बहुतों ने प्राप्त किया है, आप भी प्राप्त कर सकते हैं I पाखंड ज्ञान में अमरता की हदें पार कर देते हैं I ये कहते हैं कि प्रकृति भी अमर है , जीव भी अमर है I सारे जीव अमर हैं और ईश्वर भी अमर है I

मित्रों अमर केवल और केवल अजन्मा होता है और अजन्मा शून्य से परे होता है और वह एक ही होता है मात्र I एक का मतलब वो सर्वव्यापी होता है, सब में रम रहा होता है, वही केवल और केवल अमर है, बाकी सारी सत्ता , सारा जगत , सारी सृष्टियाँ विनाशी हैं , मरण धर्मा हैं I न तो जीव अमर है न ही प्रकृति अमर है I अमरता का मतलब कोई किसी भी तरह की घट बढ़ न हो , न तो उसमें कुछ घटे न ही उसमें कुछ बढ़े ,.... वही अमर और अविनाशी होता है I जीव में तो बहुत कुछ घटता है और बहुत कुछ बढ़ता है , न तो वो थिर है न ही उसके कोई भी तत्व थिर है, न ही इसके शरीर में जितने भी सूक्ष्म शरीर हैं अनंतों सूक्ष्म शरीर हैं, न ही वो थिर है , न ही वो अमर है I न तो जीव अमर है न ही प्रकृति अमर है I सत्य ज्ञान में केवल और केवल सत्य ही अमर और अविनाशी है , बाकी सब जगत , सर्व जगत विनाशी है मरण धर्मा है I ये जीव को सोहम बताते हैं , और अमर बताते हैं, ...उनकी मूर्खता …….यहीं पर सिद्ध हो जाती है, कि अगर जीव अमर है तो वह कभी मुक्त नहीं हो सकता, वह जीव का जीव ही रहेगा , लेकिन यह अपने ही ज्ञान से जीव को(जिसे ये आत्मा कहते हैं) अमर बता कर उसको जीव बना देते हैं और जीव को बंधन में डाल देते हैं और बंधन से वापस इसको आत्मा बना देते हैं I

इस तरह से पाखंड का ज्ञान बहुत शुरू से चलता आ रहा है, बल्कि आत्मा ही परमात्मा है , सर्वव्यापी है और वह सर्व बंधनों से मुक्त है , वह किसी भी तरह के बंधन में नहीं है स्वतंत्र है, शुरू से ही स्वतंत्र है, सारे जगत को आधार उसी तत्व ने दिया हुआ है, उस निः तत्व ने दिया हुआ है , जो समस्त तत्व और अतत्व और तत्व हीनता से परे है I

सत्य ज्ञान में परमात्मा को कृपा प्रधान बताया जाता है क्योंकि उसी की कृपा सब कुछ है और उसकी कृपा जिस पर भी हो जाए वह मुक्त हो सकता है I आत्मिक सहजता में जो भी आ जाए वह मुक्त हो सकता है , चाहे वह इंसान हो , चाहे जानवर हो, चाहे कोई पेड़ पौधा हो,...... लेकिन यह जो पाखंड का ज्ञान है इसमें केवल और केवल इंसान को ही ऐसा बताया गया है कि यही मुक्त हो सकता है,.... बाकी कोई मुक्त नहीं हो सकता I इंसान ही नहीं जानवर और पेड़ पौधे समस्त चराचर जगत मुक्त हो सकता है यदि उस पर आत्मिक कृपा हो जाए I वह आत्मा की सुध में आ जाए आत्मिक सहजता को प्राप्त कर ले, वह निश्चित ही ..मुक्त हो सकता है क्योंकि परमात्मा भेदभावी बिल्कुल नहीं है I

तो मित्रों, यह इतने सारे पॉइंट्स मैंने बताए हैं आपको कि परमात्मा समय विशेष नहीं होता उसकी जो मुक्ति है वह समय में बंध कर नहीं रहती , पंथ में बंध कर नहीं रहती या किसी जीव या व्यक्ति विशेष में बंध कर नहीं रहती , कि कोई व्यक्ति आएगा स्पेशल तो ही मुक्ति मिलेगी या कोई समय आएगा तो ही मुक्ति मिलेगी I वह समय से भी परे है वह जगह से भी परे है, व्यक्ति विशेष से भी परे है , वह पंथ से भी परे है I उस परे परमात्मा को आप समय में ढूंढते हो, किसी व्यक्ति विशेष में ढूंढते हो , कुछ लोग तो ऐसा कहते हैं कि कोई संत है, वह आएगा और जब वह आएगा तब उसकी छाया भी नहीं होगी उसका पहला लक्षण यह होगा I

तो मित्रों , छाया तो भूतों की भी नहीं होती , प्रेत की भी नहीं होती I ऐसे ऐसे लक्षण इन ग्रंथों में लिख दिए गए हैं, जिससे लोग भ्रमित हो जाते हैं और अपने आप को इंतजार में डाल देते हैं I परमात्मा की प्राप्ति को वेटिंग लिस्ट में डाल देते हैं I मित्रों पाखंड और सत्य का 36 का नहीं, अरबों खरबों का आँकड़ा है I कहते हैं ना 36 का आंकड़ा है I में तो कहता हूँ कि 36 का आंकड़ा से भी कोई बड़ा आंकड़ा होता होगा तो वो है I पाखंड और सत्य का कभी मेल नहीं हो सकता , सर्व पाखंड गिरेंगे, तभी सत्य नजर आएगा और आप पाखंड तब तक नहीं गिरा सकते, जब तक केवल और केवल अटल विश्वास उस परमात्मा पर आपका नहीं होगा , तब तक आप उलझनों में उलझे रहेंगे I कभी किसी संत के पास, कभी किसी ग्रंथ के पास, कभी किसी ढोंगी के पास, और ये ढोंगी लोग आपको मानसिक, आर्थिक, शारीरिक रूप से शोषण करते हैं, कोई थोड़ा ज़्यादा, तो कोई थोड़ा कम शोषण करता है, लेकिन किसी ना किसी तरह से करते सब हैं, और आप बेशक पूरी नियति से शोषण करवाते हो इनसे I आपको लगता है कि इन से मुक्ति मिल जाएगी I इन गधों से मुक्ति नहीं मिलने वाली आपको I ये आपका मानसिक, आर्थिक, और शारीरिक शोषण ही करना जानते हैं I

आप इनके चंगुल से बाहर आइए और परमात्मा पर अटल विश्वास रखिए I वह परमात्मा सुनिश्चित ही ...आपको सच्चा मार्ग दिखाएगा , लेकिन कभी आपने उस पर तो विश्वास किया नहीं , तभी आप इतनी सारी मुश्किलों में फंसे पड़े हो कभी कहां बहुत दूर जाते हो , कभी दिल्ली, कभी कोलकाता, कभी पन्ना, कभी अहमदाबाद, कभी हिमाचल, कभी कश्मीर, कभी कन्याकुमारी, पता नहीं कहां-कहां घूम लेते हो I मित्रों आजकल तो गुरु के चरण धुलाकर पिलाने का एक बहुत ही बड़ा प्रचलन चल पड़ा है I यह लोग कहते हैं कि गुरु के चरण धोओ तुमको ज्ञान मिल जाएगा , अखंड ज्ञान मिल जाएगा,.. चरणामृत का तो खेल ही बड़ा निराला है I जहां अमृत लग गया वह आत्मा स्वयं है आत्मा ही अमृत है I किसी के चरण धोकर पीने से आपको अमृत नहीं मिलने वाला,... और इन्हीं पाखंडियों की वजह से,..... मैं आपको एक बात बताता हूं राजस्थान में कोई एक संत है उसको लोगों ने संत कह रखा है, वह एक पाखंडी ही मानिए I यहां तो लोग चरण धुलवाते हैं ,पता नहीं क्या-क्या करवाते हैं चरण धुलवा कर, और आपको पिलवाते हैं वह छोड़िए I

एक बाबा है राजस्थान में ,..वह तंबाकू खाता है और लोग भावातुर होकर इतने मूर्ख बने पड़े हैं कि जो वो पीकदान में पीक डालता है , तंबाकू खाकर जो पीक डालता है, लोग उसको पी जाते हैं,... इतनी शर्म की बात है I ऐसे लोगों को सत्य कहां …..दूर दूर तक नहीं मिल सकता I यह चाहे जो कर सकते हैं सत्य के लिए,.. लेकिन पाखंड में इनको इतना उलझा दिया जाता है कि इनको सत्य तो क्या ,..बहुत ही बुरी तरह से असत्य में डाल दिया जाता है I मित्रों आप तब तक इनसे बाहर नहीं निकल पाओगे जब तक आप खुद अपनी सुध नहीं लोगे I

आप अपनी खुद सुध लीजिए और ऐसे लोगों को बहुत ही जबरदस्त तरीके से जवाब देना सीखिए, क्योंकि आपको भ्रमित किया है, आपको पशुवत पाश में डाला जा रहा है, पशुवत पाश की भेड़ बनाया जा रहा है आपको I आपको हर प्रोग्राम में बुलाया जाएगा ,... दान दक्षिणा ली जाएगी,... चरण दबवाए जाएंगे और विभिन्न माध्यमों से , आपके मस्तक पर ऐसी पाश डाली जाएगी जो आप पूरे जन्म नहीं छूट सकते I यह ज्ञान की एक ऐसी पाश होती है, सबसे सूक्ष्म पाश ज्ञान की होती है I सबसे पहले आपको गुरु महिमा पकड़ाई जाएगी I अब गुरु महिमा में जो जो अक्षर प्रिंटेड हैं, कहा जाएगा आप उसको नित्य ...पढ़ें...I जब आप उसको नित्य पढ़ेगे तो आपके माइंड में वह प्रिंट unconsciuos(अचेतन) माइंड में चला जाता है , और जब वह अचेतन मन में जाता है तो वह फिक्स हो जाता है, फिर आपके स्वभाव में घुल जाता है , फिर आप गुरु को परमात्मा मानने लगते हो, और जब आप गुरु को परमात्मा मानने लगते हो तो…. जो चाहे उनके लिए करना शुरू कर देते हो,...और धीरे धीरे धीरे धीरे आपको पता भी नहीं चलता और आप अमुक्ति की तरफ, बंधन की तरफ भागे चले जाते हो, और एक ऐसा समय आता है जब आप की मृत्यु होती है तब आपको सत्य का पूरा पता चल जाता है,.... तब आपके अंदर बहुत ही गहन बदले की भावना उठती है , फिर प्रकृति के बदले लेने का चक्र शुरू हो जाता है , फिर वह गुरु से आप किसी ना किसी जन्म में गुरु भी बंधन में आ जाता है आप भी बंधन में आ जाते हो, फिर किसी ना किसी जन्म में गुरु से वह हिसाब चुकता करना पड़ता है ,...तब जाकर आपको और आपके गुरु के कर्म बंधन छूटते हैं उस पर्टीक़ुलर क़र्म के क़र्म बंधन से I संपूर्ण कर्म बंधन तो आत्म साधना से ही छूटेंगे ,... मतलब वो भोग कर छूटे हैं,.... इसलिए एक बार जो कोई गुरु बन जाता है तो वह समझिए आप, जब तक उसके शिष्य मुक्त नहीं होते या जो जो कर्म उस गुरु ने अपने शिष्यों से करवाए हैं, उसका भुगतान उन उन शिष्यों को वापस नहीं कर देता ,..तब तक वह यहीं बंधा रहेगा, तब तक वह यहीं फंसा रहेगा I

तो मित्रों मेरा आपसे यही कहना है,.. कि अगर कोई यह कहे कि उनके पास कौन सा स्पेशल ज्ञान है हमारे पास कोई ज्ञान नहीं है , हम पाखंड पर वार करते हैं और मैं जब तक मुझे समय मिलता रहेगा पाखंड का दृढ़ता के साथ मैं खंडन करता रहूंगा इसमें किसी को दुख हो या सुख हो और पाखंड पर प्रहार बहुत ही मजबूती से होता रहेगा, ताकि जो भी जीव हों, जो समझ सके, उनका पाखंड गिरे और वह सत्य को जान पाए I तो मित्रों इन पॉइंट्स का आत्मसात करना और समझना कि जो लोग अगर यह कहें कि हम उन्हीं के जैसा ज्ञान देते हैं या यह कहें कि उनका ज्ञान हमने चुराया है तो आप लोगों को पता चल सके कि उनका ज्ञान क्या है और हमारा ज्ञान क्या है I बहुत सारे लोग ऐसा समझते हैं कि उनके गुरु का ज्ञान और हमारा ज्ञान एक है और हमने उनके गुरु से ज्ञान चुराया है तो आप केवल एक बार सुनने मात्र से विश्वास ना करिएगा I मेरे सारे वीडियो सुनिए और जो यह दावा करता है उनका भी ज्ञान सुनिए, तब जाकर आपको पता चलेगा कि सत्य क्या है , दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा यहां केवल और केवल पाखंड पर वार किया जाता है और आपको सत्य, जो समय से परे है, ज्ञान अज्ञान से परे है, सुरति निरति से परे है, मन से परे है , उसके बारे में इशारा किया जाता है I सत्य की ही बात कही जाएगी यहां पर,.. हम कोई कभी किसी के गुरु नहीं हैं और न ही बनने आए हैं, न हीं बने हैं, न हीं बनेंगे I धन्यवाद I

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